लोकतांत्रिक दौर


निर्धन कमजोर अशिक्षित जनता के पसीने और रक्त पर सदियों से, अपने प्रभुत्व का भवन सजाने वाले और सुविधाभोगी अब लोकतांत्रिक दौर में राजनैतिक लाभ लेने के लिए जनता के पक्ष को भ्रमित तरीके से प्रचारित करने वाले जनहितैषी नहीं होते हैं| 
जो ऊँचे-ऊँचे प्रतिष्ठित स्थानों पर आज आसीन हैं उन्हें वहाँ पहुँचाने में किन-किनका और कैसा-कैसा सहयोग है इसका आकलन दुरूह नहीं है| समाज सेवकों और राजनैतिक वर्ग के द्वारा की जाने वाली समाज सेवा में बहुत अंतर होता है| समाज सेवी निष्पृह होते हैं जबकि राजनैतिक स्वार्थी| किसी के सहयोगी बनकर उसके स्वत्वों को हड़पना राजनैतिक चतुराई हो सकती है सामाजिक न्यायप्रियता और सदाचारिता नहीं|
आज वोट की शक्ति ने उपेक्षित वर्ग को आगे आने का अवसर दिया है जिसे देखकर परम्परावादी दुरभिसंधियों द्वारा भ्रम फैला कर राजनैतिक सामाजिक और आर्थिक केंद्र अपने कब्जे में रखना चाहते हैं और इस उपेक्षित वर्ग के हितवर्धक होने का ढोंग पीटते हैं|उनके आगे आने के मार्ग के यही सबसे बड़े अवरोधक हैं बाधक हैं|
एक महरी और मजदूर के बच्चे की प्रगति हेतु क्षमता की तुलना एक स्थापित परिवार के बच्चे से नहीं की जा सकती है और स्थापीत वर्ग की हर संभव कोशिश है कि उसे इस वर्ग के सेवायें अनवरत मिलती रहें| इसी क्रम में अव्यवहारिक घोषणाएँ करके यथास्थिति बनाये रक्खी जाती है|

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