अध्यात्म के देश में व्याप्त बौद्धिक -चेतना और सरोकार ?


देश में समलैंगिकों की संख्या अर्ध-पोषित ,शोषित ,साधन और बचपन हीन , सर्दी में उघारे ,पैबंद लगे कपडे पहनने वाले ,कूड़ा बीनने वाले ,बर्तन साफ़ करने वाले ,आतिशबाजी उद्योग में कामगार ,फुठपाथों पर सोने वाले नन्हें बच्चों और किशोरों से ज्यादा तो नहीं होगी कल जब इतनी जागरूकता दिखी बुद्धिजीवियों ,समाज-सेवियों ,आमिर खानों ,और वकीलों में तो यह प्रश्न मन में उठा हर रेलवे स्टेशन और बस-स्टैंड पर समलैंगिक नहीं दीखते ....लेकिन ऐसे असहाय -बेसहारा शोषित बच्चे सभी जगह दीख जाते समाज को ,न्यायालयों को उनके अधिकारों के प्रति अपना कर्तव्य और अपनी सम्वेदना कब जागेगी ?आध्यात्म का देश भारत-वर्ष ,अनेकों गुरु और उनके अनुयायियों की लम्बी जमातें हैं यहाँ ....पश्चिम में बच्चों के अधिकार भी सुरक्षित हैं .....रैलियों में नेता इस विषय पर कभी नहीं बोलते ....जब कि बच्चे ही देश का भविष्य हैं .....क्या कोई दल इस मुद्दे को अपने मैनिफेस्टो में शामिल करेगा ?तीस चालीस मिलियन समलैंगिकों के अधिकारों के हनन में मानवाधिकारों को ढूँढने वाले ....इस बात पर अपना प्रदर्शन कब करेंगे ?दिल्ली में ब्राजीलियन -तर्ज़ पर विरोध होंगे ....बेहद आकर्षक और मीडिया के लिए मसाला भी .....लेकिन इसी दिल्ली में लाखों बच्चे यूं ही कूड़ा बटोरने को अभिशप्त रहेंगे ....३०१४ तक .....शायद  ((((

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